गुरुवार, अगस्त 19, 2010

यह उन दिनों की बात थी: विशाल की कविता


यह उन दिनों की बात थी
जब मकान और बारिश में भीगी दीवारें
बोला करती थीं और
पेड़ों का तो कहना क्या

यह उन दिनों की बात थी जब
पशु-पक्षियों और मनुष्यों का सारा संसार
मटियाले स्मृति-टीलों पर
रंगों सा बिखरा था

यह उन दिनों की भी बात थी जब
जीवन का सोता
शब्दों के तटों से दूर-दूर बहता था
जे तटों के प्यासे बुलावे पर
अक्सर अपनी भीगी बयार भेजा करता था

यह उन दिनों की भी बात थी जब
धरती पर ठंडी हवा
बहते हुए प्यासे पानी के होठों को चूमकर
गर्म हो जाया करती थी

हाँ, यह उन दिनों की बात रही होगी जब
सूरज समय देखकर नहीं निकलता होगा और
रात
रात-भर रहस्य बुनती हुई
दिन की शान्त गोद में सो जाया करती होगी

यह उन दिनों की बात थी
जब धरती होगी
और उससे कहीं अधिक बड़ा कुछ
उसे घेरे रहा होगा

नहीं,
यह उन दिनों की भी बात थी
जब आसमान नहीं बँटा था
आसमान जो ऊपर में पसरा था
ठीक वैसा ही धान के खेत में डूबा था
और धरती अपने पेड़ों के हाथों से
आसमान के सर में गुदगुदी कुरेल किया करती होगी

यह उन दिनों की बात थी
कि धरती रही होगी
कभी !

विशाल युवा कवि एवं आलोचक हैं। एक कविता संग्रह ‘आज भी अनादि से’ प्रकाशित हो चुका है। मुजफ्फरनगर (उ.प्र.) में रहते हैं। साहित्य एवं आलोचना के गम्भीर अध्येता हैं। पूर्व मंे जनसत्ता एवं ‘राष्ट्रीय सहारा में अनेक आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। ‘कथादेश’ के अगस्त अंक में हुसैन प्रसंग में उनका एक आलेख देखा जा सकता है।

5 टिप्‍पणियां:

  1. परमेन्‍्द्र भाई इस गहरी कविता के लेखक विशाल का कुछ परिचय भी देते तो अच्‍छा होता।

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  2. एक आदमी होता था



    पहले एक गोरेय्या होती थी

    एक आदमी होता था

    लेकिन आदमी इतना ऊँचा उड़ा

    कि गोरेय्या खो गई!



    पहले एक पहाड़ होता था

    एक आदमी होता था

    लेकिन आदमी ऐसे तन कर खड़ा

    कि पहाड़ ढह गया!



    पहले एक नदी होती थी

    एक आदमी होता था

    लेकिन आदमी ऐसे वेग से बहा

    कि नदी सो गई!



    पहले एक पेड़ होता था

    एक आदमी होता था

    लेकिन आदमी ऐसे ज़ोर से झूमा

    कि पेड़ सूख गया!



    पहले एक पृथ्वी होती थी

    एक आदमी होता था

    लेकिन आदमी इतने ज़ोर से घूमा

    कि पृथ्वी रो पड़ी!



    .... पहले एक आदमी होता था.

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  3. वाह अजेय भाई ! एक सवाल को हल करने का दूसरा आसान फार्मूला !

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  4. अच्छा लिखते हैं विशाल जी .....
    कुछ और रचनायें भी डालें .....!!

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  5. बेनामीजून 25, 2012 4:29 pm

    good sir its so good poem it help me in my class thanks

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