
(डॉ. अश्वघोष जाने-माने कवि, गीतकार और ग़ज़लकार हैं. उनकी अब तक कविता की दर्ज़न भर किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. उनकी कविता 'अम्मा का ख़त' आपने दौर की खासी चर्चित कविताओं में से है. उनका कविता-संग्रह 'सीढियों पर बैठा पहाड़' हाल ही में 'मेधा बुक्स' से प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह से उनकी दो कविताएँ प्रस्तुत हैं :)
सीढ़ियों पर बैठा पहाड़

नींद में डूब जाएगा थका-हारा गाँव
लेकिन रात भर जागेगा पहाड़
बैठा रहेगा सीढ़ियों पर
पहाड़ को पता है कि कभी भी
बुला सकते हैं उसे बच्चे
दोस्त की भाँति
अपने सपनों में
कि रात में किसी भी वक्त
चन्द्रमा माँग सकता है उससे अपनी चाँदनी
पहाड़ को पता है कि चलते-चलते
उसी की जेबों में रख गये हैं
पक्षी अपनी आवाज
फूल अपनी खुशबू
पेड़ अपने फल
झरने अपनी मिठास और
नदियाँ अपनी आँखें
पहाड़ को पता है कि भोर होते ही
सभी को लौटानी होंगी
उनकी धरोहरें।
काठ का घोड़ा
बुधिया ने बनाया
काठ का घोड़ा
घोड़े पर बैठेगा
मंत्री का बेटा
घोड़े को तरसेगा
संतरी का बेटा
घोड़े पर बैठेगा
दरोगा का बेटा
घोड़े को मचलेगा
कैदी का बेटा
घोड़े पर बैठेगा
सेठ का बेटा
घोड़े को रोएगा
मजूर का बेटा
बुधिया ने तोड़ दी
घोड़े की काठी
आरी से काट दी
घोड़े की गरदन
मार दिया पैरों पर
वजनी हथोड़ा
मिट्टी में मिला दिया
काठ का घोड़ा।
ये रचनाएं मन को बहुत झकझोड़ती है। समानता एवं असमानता की सामाजिक विसंगतियों पर कवि खरा व्यंग्य प्रहार करता है।
जवाब देंहटाएंगहन अनुभूति का परिणाम हैं यह कवितायेँ ...बहुत सार्थक ...समाज के सच को सामने लाती हुई ..शुक्रिया
जवाब देंहटाएंचलते -चलते पर आपका स्वागत है
परमेन्द्र जी नमस्कार !
जवाब देंहटाएंसम्मानिय अश्व घोष जी कि बेहतरीन कविताए पढवाने के लिए आभार .
साधुवाद
अश्वघोष जी सुन्दर कविताओं के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंअश्वघोष जी का व्यक्तिगत तौर पर भी प्रशंसक हूँ और उनके कृतित्व का भी। उनकी बाल कविताओं की पुस्तकांे के लिए मैंने चित्रांकन भी किया है।
जवाब देंहटाएं-उमेश कुमार, दिल्ली