रविवार, अक्तूबर 09, 2011

कुछ जापानी गद्य कविताएँ : अयाने कवाता ( प्रस्तुति : यादवेन्द्र)



एक नवजात के साथ

एक आदमी मेरा पीछा कर रहा है...उस से बचने के लिए मैं एक नवजात बच्चे से दोस्ती गांठ लेता हूँ.मेरा मकसद सिर्फ इतना है कि उस आदमी को लगे कि मैं इस नवजात बच्चे को प्यार कर रहा हूँ सो वो मेरा पीछा करना छोड़ कर कहीं कुछ और देखे.ताज्जुब, नवजात बच्चा सारे हालातों को बड़ी अच्छी तरह समझ रहा है.


बाँसुरी

मैंने हाथ में एक बाँसुरी पकड़ रखी है और बार बार इसको बजाने की कोशिश कर रहा हूँ...कोई आवाज नहीं निकल रही.अचानक मैं अपनी साँस अंदर खींचता हूँ तो मुझे लगता है जैसे चाँदी के वर्क का कोई टुकड़ा शायद मुँह के अंदर चला गया.मैं चक्कर में पड़ जाता हूँ: बाँसुरी के अंदर ऐसा क्या भरा हुआ है कि देखते देखते बाँस की बनी हुई पतली सी बाँसुरी सीप कि तरह से बीचों बीच आधी फट जाती है...और मुझे अंदर भरे हुए धातु के कबाड़ और घास फूस के बीज दिखाई देने लगते हैं.अब समझ में आता है कि बांसुरी इस लिए बजती है क्योंकि उसके अंदर इतना कुछ भरा रहता है...मैं अंदर से निकला एक एक तिनका वापस बाँसुरी के अंदर भर देता हूँ और एकबार फिर उसको बजाने की कोशिश करता हूँ...पर आवाज है कि बाँसुरी से निकलने का नाम नहीं लेती.


भागना

कोई मेरा पीछा कर रहा है इसी लिए मैं सरपट भाग रहा हूँ...पर समस्या यह नहीं है कि कोई मेरा पीछा कर रहा है , बल्कि मेरे भागने का ख़ास ढंग सारी फजीहत की जड़ है.


घोड़ा

वजह तो सही सही ध्यान नहीं पर मैंने एकबार एक घोड़ा ख़रीदा.तब मुझे यह भी मालूम नहीं था कि उस से काम कैसे लेना है.मुझे लगा कि यदि उसकी गर्दन में रस्सी डाली जाये तो घोड़े को तकलीफ होगी.मैंने एक बार मुँह में लगाम लगे एक घोड़े को देखा था,पर यही नहीं मालूम हो पाया कि मुँह पर लगाम होने पर घोड़ा खाता कैसे होगा...मुझे अब भी शक है कि भूख लगने पर इस हालात में घोड़ा घास खाता भी होगा.या यह भी मेरी जिज्ञासा थी कि घोड़े को किसी पेड़ के नीचे बांध दूँ तो बरसात होने पर वह भीग तो नहीं हो जायेगा...इस परिस्थिति में घोड़े पर क्या बीतेगी,और मेरा ऐसा करना ठीक होगा या नहीं.मुझे आस पास किसी अस्तबल का भी पता नहीं था.एक दिन अचानक क्या देखता हूँ कि घर से घोड़ा गायब हो गया...अब वह मेरी छोटी बहन बन कर उपस्थित हुआ.
वह रातों में नंगी घास पर लेटी रहती है और इसी में बीच बीच में नींद लेने की कोशिश करती है. मुझे हर बार अंदेशा होता है कि उसको ठण्ड न लग जाये पर वह मेरी ओर पलट कर जवाब देती है: मैं बिलकुल ठीक हूँ दीदी.
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अयाने कवाता 1940 में जनमी जापानी कविता की आधुनिक धारा की महत्वपूर्ण कवि हैं.इन दिनों इटली में रहती हैं.जापानी भाषा के उनके दस काव्य संकलन प्रकाशित है.
प्रस्तुति : यादवेन्द्र