सोमवार, दिसंबर 31, 2012

इस बार शुभकामना नहीं, शोकगीत !


शोकगीत

एक शोकगीत
उन मछलियों के लिए
जो पानी में रहते हुए भी मर गयीं।

एक शोकगीत
शव के पीछे-पीछे चल रहे दर्जनों लोगों
और सैकड़ों छूट गये शवों के लिए।

एक शोकगीत
उन शब्दों के लिए भी
जो समय की शिला से टकराए बिना
चूर-चूर हो गये।

एक शोकगीत
कहने के बाद शेष रहने की विवशता पर।

बुधवार, दिसंबर 26, 2012

अब भी लौटी नहीं है घर लड़की : ग़ज़लें (अश्वघोष)


अभी हाल ही में वरिष्ठ कवि अश्वघोष का ग़ज़ल-संग्रह राजेश प्रकाशन, अर्जुन नगर, दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। उन्हें हार्दिक बधाई देते हुए प्रस्तुत हैं इस संकलन से उनकी तीन ग़ज़लें -

- एक -
अब भी लौटी नहीं है घर लड़की
बन गई है नई ख़बर लड़की

घर के पिंजरे में बंद थी जब तक
नोचती थी बदन के पर लड़की

देखकर छत पे एक सूरज को
हो गई धूप-सी मुखर लड़की

सारा जीवन तनाव सहती रही
घर की इज़्ज़त के नाम पर लड़की

दफ़्तरों में कभी, कभी घर में
ख़त्म होती है किस क़दर लड़की

- दो - 
दुआएँ साथ लाए हैं तुम्हारे गाँव के बादल
हमारे गाँव आए हैं तुम्हारे गाँव के बादल

कभी आए न ख़ाली हाथ, देखो आज भी देखो
समंदर साथ लाए हैं तुम्हारे गाँव के बादल

तुम्हारी ही तरह ये भी मुझे अपने-से लगते हैं
सदा दिल में बिठाए हैं तुम्हारे गाँव के बादल

बरसने से ही ये बचते रहे हैं इस दफ़ा भी तो
बहाने साथ लाए हैं तुम्हारे गाँव के बादल

न बरसे तो भी हम तरसे, जो बरसे तो भी हम तरसे
पहेली बन के आए हैं तुम्हारे गाँव के बादल

- तीन -
मुझमें ऐसा मंज़र प्यासा
जिसमें एक समंदर प्यासा

सारा जल धरती को देकर
भटक रहा है जलधर प्यासा

भूल गया सारे रस्तों को
घर में बैठा रहबर प्यासा

इश्क फ़क़त इक सूखा दरिया
दर्द भटकता दर-दर प्यासा

‘अश्वघोष’ से जाकर पूछो
लगता है क्यूँ अक्सर प्यासा