शुक्रवार, जुलाई 30, 2010
जर्मन कवि हांस माग्नुस एंत्सेंसबर्गर की कविता-1
छाया-राज्य
एक
यहाँ अब भी मुझे एक स्थान दिखाई देता है
एक मुक्त स्थान,
यहाँ छाया में।
दो
यह छाया
बिक्री के लिए नहीं है।
तीन
समुद्र भी
एक छाया छोड़ता है शायद
और उसी तरह समय भी।
चार
छायाओं के समर
छल हैं
कोई भी छाया
किसी अन्य की रोशनी में नहीं ठहरती।
पाँच
वे जो छाया में रहते हैं
उन्हें मार पाना मुश्किल है।
छह
एक पल के लिए
मैं अपनी छाया से बाहर डग भरता हूँ
एक पल के लिए।
सात
वे जो रोशनी को
यथावत् देखना चाहते हैं
उन्हें छाया में
चले जाना चाहिए।
आठ
सूर्य से भी अधिक द्युतिमान
छाया
स्वाधीनता की शीतल छाया।
नौ
छाया में पूरी तरह
मेरी छाया गायब हो जाती है।
दस
छाया में
अब भी जगह है।
अनुवाद: सुरेश सलिल।
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कविता की यह अदा रास आई...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद...
behatareen kavitaein
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