रुको ओ पृथ्वी
रुको ओ पृथ्वी
लौट आओ मेरे पास ओ सूरज
मेरी गंवई तकदीर के पास
पुराने जंगल की बारिश
वापस कर दो मुझे वह खुशबू और वे तलवारें
जो आसमान से गिरी थीं
पत्थर और चारागाह की निर्जन शान्ति
नदी के छोरों की नमी
देवदार के पेड़ की गंध
वह जीवन्त हवा जैसे एक दिल
ऊचे अराउकारिया* के
बेचैन झुंडों के बीच धड़कती हुई
ओ पृथ्वी
लौटा दो मुझे अपने खालिस तोहफे
खामोशी की वे मीनारें जो उठी थीं
अपनी जड़ों की महानता से
जाना चाहता हूँ वापस
वह बनने जो मैं नहीं हूँ
वापस जाकर उतनी गहराई से सीखने
चाहे तमाम प्राकृतिक चीजों के बीच
मैं जी सकूँ या न जी सकूँ: कोई बात नहीं
एक और पत्थर होना, वह काला पत्थर
वह खालिस पत्थर जिसे ले जाती है नदी अपने साथ।
( *अराउकारिया= चिली में पाया जाने वाला पेड़)
(यह कविता ‘साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित पाब्लो नेरुदा की कविताओं के संग्रह ‘रुको ओ पृथ्वी’ से साभार, जिसका अनुवाद श्री प्रभाती नौटियाल जी ने किया है।)
पाब्लो नेरुदा को नमन इस दिवस विशेष पर...आभार इस रचना के लिए.
जवाब देंहटाएंओ पृथ्वी
जवाब देंहटाएंलौटा दो मुझे अपने *खालिस* तोह्फे..
आपका प्रयास और चयन-दृष्टि सराहनीय है।
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