सोमवार, जुलाई 26, 2010

शायरी मैंने ईजाद की (पाकिस्तानी कवि अफजाल अहमद सैय्यद की कविता)


अफजाल अहमद सैय्यद का जन्म गाजीपुर (.प्र.) में सन् 1946 में हुआ। उनके तीन कविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं - छीनी हुई तारीख (1984),दो जुबानों में सजा--मौज(1990) तथा रोकोको और दूसरी दुनियाएँ(2000) कविताओं के अलावा उनका एकग़ज़ल-संग्रह’ ‘खेमा--सियाहनाम से प्रकाशित है।

शायरी मैंने ईजाद की
कागज मिराकिश शहर के निवासियों ने ईजाद किया
हुरूफ फोनिश के निवासियों ने
शायरी मैंने ईजाद की

कब्र खोदने वालों ने तंदूर ईजाद किया
तंदूर पर कब्जा करने वालों ने रोटी की पर्ची बनाई
रोटी लेने वालों ने कतार ईजाद की
और मिलकर गाना सीखा

रोटी की कतार में जब चींटियाँ भी आ खड़ी हो गयीं
तो फ़ाका ईजाद हुआ

शहतूत बेचने वालों ने रेशम का कीड़ा ईजाद किया
शायरी ने रेशम से लड़कियों के लिबास बनाये
रेशम में मलबूस लड़कियों के लिए कुटनियों ने अन्तःपुर ईजाद किया
जहाँ जाकर उन्होंने रेशम के कीड़े का पता बता दिया

फासले ने घोड़े के चार पाँव ईजाद किये
तेज़ रफ्तारी ने रथ बनाया
और जब शिकस्त ईजाद हुई
तो मुझे तेज रफ्तार के आगे लिटा दिया गया

मगर उस वक्त तक शायरी ईजाद हो चुकी थी
मुहब्बत ने दिल ईजाद किया
दिल ने खेमा और कश्तियाँ बनायीं
और दूर-दराज मकामात तय किये

ख्वाजासरा ने मछली पकड़ने का काँटा ईजाद किया
और सोये हुए दिल में चुभोकर भाग गया
दिल में चुभे हुए काँटे की डोर थामने के लिए
नीलामी ईजाद की
और
जबर ने आखिरी बोली ईजाद की

मैंने सारी शायरी बेचकर आग खरीदी
और जबर का हाथ जला दिया।
(मलबूस = वस्त्र, लिबास। ख्वाजासरा = हरम का रखवाला हीजड़ा। जबर = अत्याचार)

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपने इस कविता के जरिए काफ़ी पुरानी स्मृतियों में पहुंचा दिया...

    ‘पहल’ ने अपनी पुस्तिका में अफ़ज़ाल अहमद की कविताएं प्रकाशित की थी...उन्हें पढ़कर जो नशा छाया...वह अभी तक तारी है...

    उनके लहज़े और लफ़्जों में उतरते रहना...अभी भी अच्छा लगता है...

    आभार आपका...

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  2. बार-बार पढ़ी जाने वाली कविता. बार-बार याद की जाने वाली. मेरी भी पसंदीदा.

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  3. शायरी कुछ तो शब्दों की वजह से थोड़ी मुश्किल लगी , अर्थ पढ़ पाने से समझ आई , लेखक का अपना बहाव है , शिकस्त ईजाद होने पर मुझे तेज रफ़्तार के आगे लिटा दिया , बेहतरीन पंक्ति ...शायरी बेच कर आग खरीदी और उससे अत्याचारी का हाथ जला दिया ...भी एक नए जज्बे वाली बात ...शायरी तो शायर की जमा पूँजी होती है , फिर उसे ही दाँव पर लगा देना ....वाह

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  4. इसमें कोई शक नहीं कि अफजाल अहमद साब ने शायरी इजाद की है। सचमुच पहल में प्रकाशित उनकी कविताएं अब तक जेहन में गूंजती हैं।

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  5. सच मे बार बार. कितने समृद्ध अनुभव हैं! कितनी सहज् अभिव्यक्ति. सलाम कवि !

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