बुधवार, जुलाई 07, 2010

रेड इंडियन कविताएँ-1

वेंडी रोज
आकलैंड, कैलीफोर्निया में 7 मई 1948 को जन्मी वेंडी रोज़ पिछले 25 बरसों से रेड इंडियन (मूल अमेरिकी) कविता का एक प्रमुख स्वर बनी हुई हैं। उनके एक दर्जन से अधिक कविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। अमेरिका के मूल निवासी - रेड इंडियंस को किसी तरह केवल संग्रहालय की वस्तु बना देने पर आमादा पश्चिम का विरोध उनकी कविता का मूल स्वर है।



त्रुगानिन्नी
तस्मानियन आदिम जाति की अंतिम जीवित सदस्या त्रुगानिन्नी ने अजायाबघर में भुसभरे अपने मढ़े हुए पति का शव देखा था। मरने के पहले उसने इच्छा व्यक्त की थी कि उसे मृत्यु के बाद उसके पिछवाड़े या समुद्र के किनारे दफन कर दिया जाए। वह नहीं चाहती थी कि उसकी अपनी लाश को भी अपने पति जैसी अपमानजनक स्थितियों से गुजरना पड़े। फिर भी मरने पर उसके शव को भी भुस भरकर और मढ़कर अस्सी वर्ष से अधिक अजायबघर में प्रदर्शन के लिए रखा गया।

तुम्हें आना होगा
थोड़ा और नजदीक
क्योंकि बहुत थोड़ी सी
बची है यह जुबान
और जो मैं कह रही हूँ
वह है महत्वपूर्ण।

मैं हूँ बस अंतिम
मैं जिसके स्तन रोते थे
सफेद कुहासे जिसने
देखे थे कितनी ही बेटियों को
मरते जिनके मुँह थे खाली
और गोल रुक गयी थीं
जिनकी साँस और
ढबरा गयी थीं जिनकी आँखें।

लो मेरे हाथ
साँवले को साँवले में
जैसे पीली मिट्टी
पिघलती हो धीमी-धीमी
धरती के प्यास की
सुनहरी आब पर,
मैं पिघल रही हूँ
पिछले सपनों में।

मुझे मत जाओ छोड़कर
क्योंकि मैं चाहती हूँ
बोलना और गाना
एक और गीत।

वे ले जाएँगे मुझे
आ गये हैं लो पहले ही
जबकि चल रही है अभी मेरी साँस
उन्हें प्रतीक्षा है मेरे अंत की,
मेरी मृत्यु की
हम आदिम लोग लेते हैं
कितना लंबा समय।

दया करो,
ले चलो मेरा शरीर
अंधकार के स्रोत की ओर
उस विराट काले रेगिस्तान में
जहाँ जनमे थे सपने
डाल दो मुझे पर्वत की
विशाल स्थूलता के नीचे या
सुदूर सागर में

रख दो मुझे वहाँ जहाँ वो
पा न सकें मुझको।

(ये रेड इंडियन कविताएँ 'रक्त में यात्रा' शीर्षक से पहल-पुस्तिका के रूप में प्रकाशित हैं। अनुवाद श्री वीरेंदर कुमारबरनवाल जी का है। पहल एवं बरनवाल जी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए इन्हें पोस्ट कर रहा हूँ)

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