मंगलवार, मार्च 01, 2011

मेरा मन पानी था : सार्थक

उस दिन जब विशाल के घर जाना हुआ तो उनके पुत्र सार्थक की कविताएँ उसके भाई संज्ञान के स्वर में सुनने को मिलीं। इस दौरान सार्थक संकोच में था। बेहद शर्मीले नोनी (सार्थक) की ये कविताएँ सहसा चैंकाती हैं, क्योंकि इस मई में वह उम्र के केवल दस बरस पूरे करेगा। असमय इतनी प्रौढ़ता....। यह ओढ़ी हुई प्रौढ़ता तो नहीं है। उसके प्रिय लेखक निर्मल वर्मा हैं। वर्तमान शिक्षा-पद्धति से पिता की गहरी नाराजगी और असहमति के चलते पिछले तीन बरस से घर पर ही अपनी प्राथमिक शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। अपनी कविताओं को उसने अपने बनाए स्कैचों से भी सजाया था। उसके स्कैच भी दर्शनीय हैं, फिर कभी उसकी कविताओं साथ उन्हें भी आपके समक्ष प्रस्तुत करूँगा। फिलहाल प्रस्तुत हैं सार्थक की ये कविताएँ -

घर और झूला

घर और झूला एक हो गये
पेड़ में दोनों ही समा गये थे
गिलहरियों के लिए एक ढलान
जिस पर वे कूदती-भागती रहीं
रुकने का कोई निश्चित लक्ष्य नहीं
खेल में।


आमने-सामने शीशे

आमने-सामने शीशे
कई सारी गहराइयाँ खोद जाते हैं एक-दूसरे में
और अपनी छवियाँ छोड़ जाते हैं उन गहराइयों में
अनन्तता तक।


घर तक सीढ़ियाँ

घर तक सीढ़ियाँ थीं
पेड़ों ने भी दर्शाया था
वे सीढ़ियाँ तब तक थीं जब तक मैं उन्हें समझता
पाँच साल तक इन्तजार और डर का परिचित बना रहा
इनके अनुभवों से परिचित होने से इनका राजा भी बन गया
मेरा मन पानी था जब वे रंग बनकर उसमें घुले
धीरे-धीरे वह पानी जमा
और वह रंग बर्फ की धुँधलाहट में मर गये।

8 टिप्‍पणियां:

  1. पहली दो कविताएं सचमुच बालमन की कविताएं हैं,जो चौंकाती भी हैं। सार्थक का उत्‍साहवर्धन तो किया ही जाना चाहिए,पर यह ध्‍यान भी रखना चाहिए कि वे असमय ही प्रौढ़ता के शिकार न हो जाएं। बधाई भी,और शुभकामनाएं भी।

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  2. सुन्‍दर कवितायें सार्थक को शुभकामनाये

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  3. सुन्‍दर कवितायें सार्थक को शुभकामनाये

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  4. कवितायें सुन्दर हैं...
    और कविताओं का इन्तजार है

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  5. उत्साही जी से सहमत.

    इस नन्हे कवि को शुभ कामनाएं, इन्हे आगे भी पढ़ना चाहूँगा.

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  6. krapya inki aur kavitayen post karein .nanhe kaviraaj ko meri shubhkamnayein..

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