
मेरे पिता एक रिटायर्ड जादूगर हैं
मेरे पिता एक रिटायर्ड जादूगर हैं
इसी लिए तो मेरे बर्ताव में इतनी अनगढ़ता है
इसी लिए तो मेरे बर्ताव में इतनी अनगढ़ता है
सब चीजें निकलती हैं
उनके जादुई हैट से
या बिना तल वाली बोतलों से
या फिर रंग बिरंगे तोतों के अंदर से...
ये सब इस कदर सहज होता है
जैसे कहीं से निकल आयें खरगोशों के कई जोड़े
या पचास सेंट के तीन सिक्के...
1958 में मेरे पिता ने जादूगरी से संन्यास ले लिया
और करने लगे दूसरा धंधा
हुआ यह कि तीसरे क्लास की मेरी एक दोस्त
एक दिन औचक ही कर बैठी उनसे फरमाईश...
आपके जादू में है ताकत तो आप मुझे इसी वक्त...
यहीं बना दो...काले से गोरा...
अब इस बेतुकी फरमाईश पर कोई खुद्दार अश्वेत
अमेरिकी करता भी तो क्या करता...
बोलते रहे यूँ ही अगड़म बगड़म
गिल्ली सिल्ली काली कलकत्ते वाली...
और ज्यों की त्यों रख दी चदरिया...
सच ये है कि जादूगरी पर भरोसा रखनेवाले अश्वेत बच्चे
बन जाते हैं राजनैतिक संकट
अपनी ही नस्ल के लिए.
मेरे पिता के हाथों की ताली से
नहीं बन सकता था कोई काले से गोरा
पलक झपकते...वहीँ बैठे बैठे.
मैं आज जितनी अनूठी दिखती हूँ
वो इस लिए कि मैं सीख रही हूँ पिता से
जादू की बारीकियां और तरकीबें...
इन दिनों मैं जो कुछ भी करती हूँ
जादू ही जादू होता है
और ये सब होता है खूब चटक रंग का
आप खुद देखिये कितना गहरा चटक रंग है ये
आप इनके साथ कुछ छेड़छाड़ की कोशिश मत करना...
मालूम है न
मैं ऐसे परिवार की हूँ जिसमें हैं कई
रिटायेर्ड जादूगर और भाग्यवाचक
जानते हो..अकेली नहीं हूँ मैं
चार करोड़ से ज्यादा रूहें और ग्रह नक्षत्र
संगठित होकर खड़े हैं मेरे साथ साथ.
मैं जरुर सुनूंगी तुम्हारी व्यथा कथा
मदद करुँगी जिस से सुधर जाये तुम्हारा
रोजगार,प्रेम,घर परिवार...
कर सकती हूँ ऐसे उपाय
कि स्वर्ग में तुम्हारी दादी और ज्यादा इज्जत के साथ
वास कर सकें...
तुम्हारी माँ सुगमता से
पार कर सकें मेनोपौज की मुश्किलें
और सुधर जाये तुम्हारा बेटा
करने लगे खुद ही अपने कमरे की सफाई.
हाँ...हाँ...हाँ...मन के अंदर धारण करो
कोई तीन इच्छाएं
सब के सब पूरी होंगी...
तुम्हारी लटों के लिए सुर्ख लाल रंग का रिबन
माच्चु पिच्चु का एक मिनिएचर चित्र.
संभव तो है सब कुछ
पर अपने होशो हवास में रहते हुए
कितनी भी नामी गिरामी क्यों न हो
कोई भी जादूगरनी
नहीं बना सकती तुम्हें गोरा...
यदि तुम गोरा होने पर ही आमादा हो
तो मुझे लगता है
तुम्हें दरकार होगी काले जादू की
मैं तो बना सकती हूँ तुम्हें भला और नेक
नेक और अश्वेत
और इसी तरह तुम जीवन भर बने रहोगे
अश्वेत ही
धीरे धीरे तुम्हें यही सब कुछ भाने लगेगा..
ऐसे ही अश्वेत बने रहना
जीवन भर
हाँ..अश्वेत बने रहना...
और खुश रहना इसी हाल में
खुश रहो...
कि तुम अश्वेत हो.
बेहतर कविता...
जवाब देंहटाएंएक सुंदर कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद.
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