घुमाते हुए पुतलियाँ
तानकर लाल मुट्ठी हवा में
ले रहा है भरपूर अँगड़ाई
एक नवजात सपना।
कूदकर बिछौने से
दौड़कर जा बैठा
एवरेस्ट की चोटी पर
उठाकर कूची
भर दिये रंग
ठंडे सूरज में
खिल उठी सद्यस्नाता पृथ्वी
हरी धूप में भीगकर
खेलने लगे खो-खो
सारी दुनिया के बच्चे एक साथ
भरकर मुट्ठी में बादल
फेंककर मारा
सहारा के आसमान के चेहरे पर
खिलखिला उठी दामिनी
गुलाबी हो गया पूरा सहारा
कुलाँचे भरीं शावकों ने
पिया भर पेट पानी
पक्षियों ने गाये मल्हार।
ठुमक-ठुमक लगा आया चक्कर
दुनिया का
छुनन-छुनन, छुनन-छुनन बजी पैंजनियाँ
बलैयाँ लीं माँ ने
गुनगुनाने लगीं बंदनवार
झूमकर नाचे मंगलाचार
तंदूर ने किया कत्थक
आज कहीं भी, कोई भी भूखा नहीं सोया
फूट आयीं कोंपलें
हथियारों के जखीरों की कब्र पर।
हाथों में थामकर
एक नर्म-गर्म हाथ
टहला कुछ देर सागर की तली पर
रोंप आया प्रेम-मोती सीप की कोख में
टाँग आया अंतरिक्ष में कंदील
गाजापट्टी पर मिलीं गले
ईद और क्रिसमस।
श्श...ऽ...ऽ...ऽ...
शोर मत करो
यह कुनमुना रहा है।
* 1962 में जन्मे अश्वनी खण्डेलवाल की कविताएँ सात कवियों के संयुक्त कविता-संग्रह ‘सदी का सच’ में संकलितहैं। कुछ पुस्तकों का सम्पादन भी किया है। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित होती रहती हैं।
सम्पर्क: 22-प्रेमविहार, मुजफ्फरनगर।
Email : ashwani.khandelwal@rediffmail.com, M : 9837817608
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बेहद खूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंआह! वह ज़रूर मेरा बुद्ध होगा ......!
जवाब देंहटाएंयह बहुत बड़ी शुभकामना है हमारे समय के लिए.
खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंप्रेम एवं सद्भाव की सुनहरी दास्ताँ कुछ पीड़ा के साथ व्यक्त करने के लिए मेरी बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता...
जवाब देंहटाएंबहुत बढि़या! आपकी तरह ही बेबाक और बर्हिमुखी...
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