मैं इनकार क्यों करूँ
क्यों रोकूँ अपने होंठ
और उनकी मुस्कान...
मैं इनकार क्यों करूँ
क्यों छुपाऊँ अपना दिल
और उनके दुःख...
मैं इनकार क्यों करूँ
फेरूँ अपनी आँखें
और उनके आँसू...
मैं इनकार क्यों करूँ
बाँध कर रखूं अपनी लटें
और उनमें बसी हुई
अपनी उम्र की आवारगी...
मैं करुँगी भी तो
ऐसा कुछ भी नहीं है मेरे पास अपना
जिसको इनकार करूँगी.
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