गुरुवार, नवंबर 04, 2010

फूल को कुचल डालने का समय आ गया है : सिमीं बहबहानी

इरान की शेरनी के नाम से मशहूर 83 वर्षीय सिमीं बहबहानी आज के ईरानी काव्य जगत की सर्वाधिक सम्मानित कवियित्री हैं..अपने समय के खूब चर्चित और सम्मानित लेखक माता पिता की संतान सिमीं को बचपन से ही कविता लिखने का शौक लग गया और 14 साल में उनकी पहली कविता प्रकाशित हुई.उनके कई कविता संग्रह प्रकाशित हैं और पिछले वर्षों में दो बार साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए उनका नाम प्रस्तावित हुआ.अपनी कविताओं में इरान के सामयिक हालातों और देश में स्त्रियों के ऊपर लगायी गयी पाबंदियों के विरोध में सिमीं बेहद मुखर रही हैं.देश की राष्ट्र कवि का दर्जा दिए जाने के बाद भी हाल में उन्हें देश से बाहर जाने की इजाज़त नहीं दी गयी--वजह थी वर्तमान शासन का लोकतान्त्रिक और रचनात्मक ढंग से विरोध करने वाले लेखकों फिल्मकारों के दमन की खुली मुखालफत। इरान में लोकतान्त्रिक आज़ादी को कुचलने की नीति का उन्होंने अपनी कविताओं में जम कर विरोध किया है,यहाँ प्रस्तुत है उनकी ऐसी ही एक बेहद चर्चित कविता :
(अनुवाद एवं प्रस्तुति : यादवेन्द्र)
फूल को कुचल डालने का समय आ गया है
फूल को कुचल डालने का समय आ गया है
अब और टाल मटोल मत करो
बस हाथ में थामो हंसिया
और दृढ कदमों से आगे बढ़ो..
देखो तो हरा भरा मैदान दूर दूर तक
ट्यूलिप के फूलों से लदा पड़ा है
आज तक देखी है किसी ने ऐसी निर्लज्ज ढिठाई
हरियाली अब भी शोखी से ऊपर ही ऊपर चढ़ती जा रही है..
समय आ गया है जब इनको
माथे से कस कर दबा दिया जाये.
मन के अंदर की ख़ुशी इतनी जाहिर हो रही है
कि हर शाख पर खिलते जा रहे हैं फूल
दिखावा..और वो भी इतना चटक रंग बिरंगा..
बिलकुल ही नहीं इसकी आज़ादी.
मैदान में फ़ौरन आ जाओ अपना खंजर लेकर
फूल की एक एक कोंपल को काट डालना है
जिससे सामने न कुछ दिखाई दे
और न ही मन में कोई ख्वाहिश पनप पाए.
देखन होगा
एक अदद कोंपल भी न बच पाए..
मुझे डर है कहीं पाँव न पसार ले
आत्ममोह अपना उलझाने वाला जंजाल
सुनहरे कटोरे या छह किनारे वाली तश्तरी का मोहक रूप धर कर..
इसको तुरंत रोकना होगा
जो कुल्हाड़ी है तुम्हारे पास संभाल कर रखी हुई
क्या होगा इसका इस्तेमाल
यदि काट ही न सको तेजी से बढ़ता ये लुभावना वृक्ष..
इस छतनार वृक्ष की किसी शाख पर
चौकस रहो, बैठ न जाये कोई परिंदा पल भर को भी.
मेरे गीतों और जंगली खुशबूदार झाड़ियों में
अंदर तक रचे बसे हैं संदेसे और सुगंध.
इनको कतई मौका मत दो
कि बढ़ा लें अपनापा और मेलजोल
आवारा गुन्जारों के साथ
और बन जाएँ विनाशकारी झंझावत.
मैं और मेरा दिल किसी हरे भरे मैदान से ज्यादा उर्वर है
और इसकी मामूली सी माटी और पानी में भी
पलक झपकते अंकुर की तरह फूट पड़ते हैं फूल ही फूल...
सबसे सुरक्षित यही है
कि मुझे सिर उठा कर खड़ा ही मत होने दो
यदि तुम दुश्मन हो बसंत के
सचमुच...सचमुच.

14 टिप्‍पणियां:

  1. संघर्ष के स्‍वर हर जगह मौजूद हैं।

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  2. संघर्ष के स्वरों की मुखर कविता वह भी इरानी कवियित्री की....

    एक श्रेष्ठ कविता..

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  3. जीवन एक संघर्ष है…………बेहतरीन कविता।

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  4. नारी का संघर्ष जारी है ..बहुत अच्छी पास्तुती

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  5. संघर्ष क्या है , जिन्दगी का दूसरा नाम , और इसी बात पर केन्द्रित यह कविता अपने आप में सुंदर सन्देश का सम्प्रेषण करती है ....शुभकामनायें

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  6. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 09-11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

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  7. basant ke dushmano ko apne chitt ki dridhta ka bhaan karati uttam rachna!!!

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  8. सुंदर प्रस्तुति. सिमीं बहबहानी जी से परिचय कराने के लिए धन्यवाद. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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