कुछ दिनों पहले उदयन वाजपेयी मुजफ्फरनगर में आयोजित ‘मलयज स्मृति व्याख्यान’ देने के लिए पधारे थे। इस अवसर पर उनकी कविताओं का रसास्वादन जमकर लिया गया। उनकी एक कविता ‘सांत्वना’ यहाँ उनके स्वर सहित प्रस्तुत है -
सांत्वना
अपने एक दिन न रह जाने के ख्याल में इतनी सांत्वना थी कि मैंने अपने एक दिन न रह जाने के ख्याल में ही रहना शुरू कर दिया। अब मेरे घर के सामने का पेड़ मेरी मृत्यु के बाद का पेड़ है जिस पर धूप पड़ रही है। अब मेरी हर यात्रा मेरी मृत्यु के बाद की यात्रा है। मेरा यह शरीर अपनी मृत्यु के बाद मेरी स्मृति में अटका रहा आया कोई तिनका है। अब अन्तरिक्ष के फैलाव में उलझी यह पृथ्वी मेरे जाने के बाद बची रही आयी पृथ्वी है जिस पर मेरे बेटे अपने ढेरों बल्लों से क्रिकेट खेल रहे हैं और जिसकी एक छत पर बैठी तुम मेरे आने की प्रतीक्षा कर रही हो।
adhbhut!
जवाब देंहटाएंamoolya..
जवाब देंहटाएंAisee kavita ke likhe jane ke khayaal men hi kitni santwna hai. Lekin, Parmendra Bhai, sirf ek?
जवाब देंहटाएंbehad sunder !
जवाब देंहटाएंsadhuwad !
saadar !
ambuj ji ke baad sidhe Udayan :)
जवाब देंहटाएंwah!!!
जवाब देंहटाएंकविता समझ मे आई. इस का शीर्षक होना चाहिए, -- काल भ्रम. या -- मृत्यु चेतना.
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