विज्ञान व्रत का जन्म 17 अगस्त 1943 को जनपद मेरठ में हुआ। ग़ज़ल की चार किताबें - ‘बाहर धूप खड़ी है’, ‘चुप की आवाज़’, ‘जैसे कोई लौटेगा’ और ‘तब तक हूँ’ और एक दोहा-संकलन ‘खिड़की-भर आकाश’ प्रकाशित। ‘छोटी बहर के बड़े शायर’ होने के साथ-साथ विज्ञान दा देश के प्रमुख चित्रकार भी हैं। ललित कला अकादमी, आईफैक्स तथा राज्य कला अकादमियों के अतिरिक्त विदेश में उनके चित्र लगातार प्रदर्शित होते रहे हैं। यहाँ प्रस्तुत हैं उनकी आठ ग़ज़लें -
- 1 -
जुगनू ही दीवाने निकले
अँधियारा झुठलाने निकले
ऊँचे लोग सयाने निकले
महलों में तहख़ाने निकले
वो तो सबकी ही ज़द में था
किसके ठीक निशाने निकले
आहों का अंदाज़ नया था
लेकिन ज़ख़्म पुराने निकले
जिनको पकड़ा हाथ समझकर
वो केवल दस्ताने निकले
- 2 -
मुझको अपने पास बुलाकर
तू भी अपने साथ रहा कर
अपनी ही तस्वीर बनाकर
देख न पाया आँख उठाकर
बे-उन्वान रहेंगी वरना
तहरीरों पर नाम लिखा कर
सिर्फ़ ढलूँगा औज़ारों में
देखो तो मुझको पिघलाकर
सूरज बनकर देख लिया ना
अब सूरज-सा रोज़ जलाकर
-3-
मैं कुछ बेहतर ढूँढ़ रहा हूँ
घर में हूँ घर ढूँढ़ रहा हूँ
घर की दीवारों के नीचे
नींव का पत्थर ढूँढ़ रहा हूँ
जाने किसकी गरदन पर है
मैं अपना सर ढूँढ़ रहा हूँ
हाथों में पैराहन थामे
अपना पैकर ढूँढ़ रहा हूँ
मेरे क़द के साथ बढ़े जो
ऐसी चादर ढूँढ़ रहा हूँ
-4-
तुम हो तो ये घर लगता है
वरना इसमें डर लगता है
कुछ भी नज़र न आए मुझको
आईना पत्थर लगता है
उसका मुझसे यूँ बतियाना
सच कहता हूँ डर लगता है
जो ऊँचा सर होता है ना
इक दिन धरती पर लगता है
चमक रहे हैं रेत के ज़र्रे
प्यासों को सागर लगता है
-5-
सुन लो जो सय्याद करेगा
वो मुझको आज़ाद करेगा
आँखों ने वो कह डाला है
तू जो कुछ इरशाद करेगा
एक ज़माना भूला मुझको
एक ज़माना याद करेगा
काम अभी कुछ ऐसे भी हैं
जो तो अपने बाद करेगा
तुझको बिल्कुल भूल गया हूँ
जा तू भी क्या याद करेगा
-6-
बच्चे जब होते हैं बच्चे
ख़ुद में रब होते हैं बच्चे
सिर्फ़ अदब होते हैं बच्चे
इक मकतब होते हैं बच्चे
एक सबब होते हैं बच्चे
ग़ौरतलब होते हैं बच्चे
हमको ही लगते हैं वर्ना
बच्चे कब होते हैं बच्चे
तब घर में क्या रह जाता है
जब ग़ायब होते हैं बच्चे
-7-
मैं था तनहा एक तरफ
और ज़माना एक तरफ़
तू जो मेरा हो जाता
मैं हो जाता एक तरफ़
अब तू मेरा हिस्सा बन
मिलना-जुलना एक तरफ़
यूँ मैं एक हक़ीक़त हूँ
मेरा सपना एक तरफ़
फिर उससे सौ बार मिला
पहला लमहा एक तरफ़
-8-
वो सितमगर है तो है
अब मेरा सर है तो है
आप भी हैं मैं भी हूँ
अब जो बेहतर है तो है
जो हमारे दिल में था
अब ज़ुबाँ पर है तो है
दुश्मनों की राह में
है मेरा घर, है तो है
एक सच है मौत भी
वो सिकन्दर है तो है
पूजता हूँ मैं उसे
अब वो पत्थर है तो है
वाह ! हर ग़ज़ल के आशार..वल्लाह !! पहली ही ग़ज़ल का पहला ही शेर आनंदित कर गया..! अभी भी पढ़ रहा हूँ हर ग़ज़ल..बार-बार !! बहुत ही खूबसूरत !! विज्ञान व्रत जी को इतनी उम्दा और मुकम्मल ग़ज़लों के लिए बधाई और आभार !
जवाब देंहटाएंअद्भुत! बेहतरीन!!लाजवाब!!!
जवाब देंहटाएंआंच पर संबंध विस्तर हो गए हैं, “मनोज” पर, अरुण राय की कविता “गीली चीनी” की समीक्षा,...!
विज्ञान व्रत जी की बेहतरीन गज़लें पढ़वाने का आभार मित्र.
जवाब देंहटाएंजुगनू ,,,आहें ...और दस्ताने .....जी ज़ख्म पुराने हैं पर अंदाज़ बिलकुल नया .....
जवाब देंहटाएंअच्छी गजलें हैं परमेन्द्र जी ......!!
विज्ञान व्रत जी की इतनी सारी रचनाएं पढ़कर अच्छा लगा। खासकर घर में आइने वाला शेर।
जवाब देंहटाएंछोटे बहर की बड़ी ग़ज़लें...
जवाब देंहटाएंविज्ञान जी की ये ग़ज़लें पहले भी पढ़ीं और सुनी हैं। पर इनकी ख़ासियत यह है कि इन्हें बार बार पढ़ने -सुनने पर भी ये अच्छी लगती हैं और भीतर एक हलचल पैदा करती हैं।
जवाब देंहटाएंChoti bahar kee badee badee gazalein hain
जवाब देंहटाएंआदरणीय विज्ञानं व्रत जी
जवाब देंहटाएंप्रणाम !
सर्व प्रथम आप का हालही में हुए '' एकल ग़ज़ल पाठ '' के लिए बधाई ,
आप कि सभी गज़ले उम्दा लगी जब कि कई शेर तो ''इरशाद'' '' इरशाद '' करने वाले है अगर हम आप से रूबरू लुत्फ़ लेते ,बहरहाल आप को इन ग़ज़लों के लिए बधाई ,
साधुवाद !
विज्ञान ब्रत की गजले पढवाने के लिए आभार ।बास्तव में विज्ञान ब्रत को छोटी बहर की गजलो में बडी बात कहने की विशेषज्ञता हासिल है।गजल कहते हुए उनके नाम का ब्रत एक ऐसे सर्किल में तब्दील हो जाता है जहां पाठक वहुत देर तक रमण करता रहता है ।
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