अपना चित्र
मेरा चेहरा ऐसा तो बिलकुल नहीं था
जैसा आज दिख रहा है
इतना गुमसुम
इतना उदास
इतना मरियल
न ही इतनी खोखली थीं मेरी आँखें
और न मेरा मुंह था कभी भी इतना कसैला.
मेरे हाथ इतने शक्तिहीन नहीं थे
इतने सुस्त
इतने ठन्डे
और इतने मुर्दा तो नहीं थे कभी...
मुझे महसूस ही नहीं हुआ
कब हो गया इनमें इतना बदलाव
इतनी आसानी से
और निर्णायक
पलक झपकते सहज ही...
जाने किस दर्पण में
गुम हो गया मेरा चेहरा?
गिटार
तुम चाँदी के खंजर थे
हाँ,चाँदी के खंजर
पर तुम्हें कैसे ठहराऊं मैं
दोषी अपने हाथों को भरमाने का...
तुम्हें चमकते देखा मैंने
पत्थरों के बीच
चाँदी के खंजर
तुम्हारे हैंडिल पर खिल रहे थे मनमोहक फूल
और काया थी चिकनी साँचे में तराशी हुई
बिलकुल नापजोख कर गढ़ी हुई
चाँदी के खंजर
जिससे सीधे सीधे उतर जाएँ मेरे दिल के अंदर
देखते ही...बिना एक पल की देर किये हुए.
मेरे दिल का सबसे बड़ा दर्द क्या है
जानते हो चाँदी के खंजर...
कि देख नहीं सकती कैसे दम तोड़ रही हूँ मैं
पर जानती हूँ बखूबी
कि कौन क़त्ल कर रहा है मुझे.
गीत
मैं अपने सपनों को डालती हूँ एक जहाज में और ठेल देती हूँ उसको सागर के अंदर
इसके बाद उलट पुलट करती हूँ मैं सागर
जिस से अतल गहराई में समा जाएँ मेरे सपने.
हाँ, मैं गुनगुनाती हूँ गीत
गीत ही हैं मेरे लिए सब कुछ
इसी से होता है रक्तसंचार निरंतर
और यही हैं अनछुई ऊँचाइयों तक उड़ने वाले लययुक्त पंख..
मुझे अच्छी तरह पता है
एक दिन मैं हो जाउंगी गूंगी और चेतनाशून्य
और गुनगुनाना नहीं होगा मेरे लिए मुमकिन.
- चयन और प्रस्तुति : यादवेन्द्र / ए-२४,शांति नगर,रूडकी