बुधवार, दिसंबर 15, 2010

औरतें : नाज़ी कवियानी (अनुवाद एवं प्रस्तुति : यादवेन्द्र)


इरान में जन्मीं नाज़ी कवियानी सैन फ्रांसिस्को में रहती हैं और एक ब्लॉग http://nazykaviani.blogspot.com चलाती हैंयहाँ प्रस्तुत है उनकी एक कविता (अनुवाद एवं प्रस्तुति : यादवेन्द्र)

औरतें

मेरे अंदर छुपी हुई है एक मासूम नन्हीं सी बच्ची
चटक नाक नक्श वाली और उम्मीदों से लबालब...
इसमें शोखी भरी चाल, ठहाकेदार हंसी और
हरदम थिरकने को आतुर टांगों वाली एक जवान स्त्री बसती है
कभी भनक नहीं लगती
कि उसके अंदर कितनी तेज बह रही है
नए नए लोगों और स्थानों को
देखने की उत्कट जिज्ञासा.
यहाँ एक कामोत्तेजक स्त्री रहती है
मोहपाश में फांस कर भरमा देनेवाली
प्रेमिका और आसक्त अनुरागी
स्पर्श के गहरे भेदों,आमंत्रणपूर्ण निगाहों और स्वागती चुम्बनों की
खूबसूरती परत दर परत उधेड़ने वाली स्त्री भी
रहती है मेरे अंदर.
निरंतर नितांत उदार,पालनहार और भरण पोषण करनेवाली माँ भी
रहती है मेरे शरीर के अंदर .
अनुभवी सयानी, अपने हुनर सिखाने को लालायित,
मुश्किल में दिलासा देने वाली
मार्गदर्शक और भविष्य निर्माता औरत
एकसाथ ही मैं सब कुछ हूँ.
एक प्रेमपगी भरोसेमंद साझेदार, करुणामयी और निष्ठावान पत्नी
सब कुछ समाया है एक मेरे ही भीतर.
मैं ये सब औरतें एकसाथ हूँ
और ये सब समाहित हैं मेरे अंदर एक साथ ही.
जब मैं कामोद्दीप्त दिखती हूँ
तब भी मेरे अंदर करवट लेती रहती है
एक मासूम नन्ही सी बच्ची.
जब मैं छोटी बच्ची दिखती हूँ
तब मेरे अंदर वास करती है एक माँ..
जब मैं जवान दिखती हूँ
तब मेरे अंदर करवटें लेती है
इतिहास की सारी की सारी समझदारी
मुझे इनमें से केवल एक रूप में कभी मत देखो
सिर्फ एक इकहरे रूप में किसी स्त्री को प्यार मत करो...
मेरे अंदर बसी हुई अनेकानेक स्त्रियों की
उपेक्षा अवहेलना कभी मत करो.
जब तुम सो जाते हो नींद में
पसीने से लथपथ
तृप्त संतुष्ट और भरे भरे
भूलना मत हमेशा याद रखना
कि मेरे अंदर बैठी हुई चटक नाक नक्श वाली बच्ची
मांग करेगी जिम्मेवार परवरिश की
मेरे अंदर की अनुभवी सयानी औरत
चाहेगी खुद के लिए भरपूर आदर सम्मान
मुझमें समायी हुई उद्यमी पोषक स्त्री को
सहज अपेक्षा रहेगी उचित कद्रदानी की
मेरे अंदर की जवान स्त्री ढूंढेगी
उन्मत्त करने वाला उत्तेजक उल्लास.
और मुझमें बैठे हुए साझेदार जीवनसाथी को
चाहिए होगा निष्कपट शुद्ध बर्ताव.
अब जब भी तुम आस पड़ोस की
30 ,40 ,50 या 60 साल की किसी स्त्री पर
दिल फेंक मोहित होने लगो
तो सबसे पहले उसके अंदर गहरे झांकना
वहां जरुर बैठी दिख जायेगी तुम्हे
एक मासूम नन्ही सी बच्ची...

4 टिप्‍पणियां:

  1. behad hee gahri, sashakt aur prabhavit karne waali kavita.. aapka sadhuwad aadarniy Parmendra ji !

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  2. puroosh-sattatmak samaj ke virodh me khadi bhai badi sunder aur prabhavshli kavita hai.anuvadak aur aapko badkai.

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  3. हमारे रोजमर्रा के जीवन की एक सच्‍चाई से परिचित कराने वाली कविता। सचमुच हम अपने आसपास की हर स्‍त्री में सब कुछ देखते हैं,पर उस मासूम बच्‍ची को नहीं देख पाते जो उसका आधार है। परमेन्‍द्र जी और यादवेन्‍द्र जी दोनों को बधाई।

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  4. अच्छी कविता का अच्छा अनुवाद ।

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