रविवार, अक्तूबर 03, 2010

सात फटकार: खलील जिब्रान

(अनुवाद बी.एस. त्यागी)

मैंने अपनी आत्मा को सात बार फटकार लगायी
पहली बार - उस समय जब कमजोर लोगों का शोषण कर
स्वयं को प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया
दूसरी बार - जब मैंने उन तमाम लोगों के सामने पंगु होने का स्वांग किया
जो सचमुच पंगु थे
तीसरी बार - जब मुझे चयन करने का अवसर मिला
और कठिन को छोड़कर सरल को अपना लिया
चैथी बार - जब मैंने गलती की और दूसरों की गलती से
स्वयं को सांत्वना दी
पाँचवीं बार - जब मैं भय के कारण विनम्र हो गया था
और दावा किया था धैर्यवान होने का
छठी बार - जब कीचड़ से बचने के लिए मैंने
अपना लबादा ऊपर उठा लिया था
सातवीं बार - जब मैं प्रार्थना की पुस्तक लेकर
ईश्वर के सामने आ खड़ा हुआ और प्रार्थनागान को ही महान गुण समझ बैठा।

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत-बहुत धन्यवाद, इतनी अच्छी बात बताने के लिए।

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  2. बहुत अच्‍छी कविता और अनुवाद भी बढ़िया है।
    दूसरी पंक्ति में 'लोगों को शोषण' की जगह शायद 'लोगों का शोषण' होना चाहिए था। कृपया चेक कर लें।

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  3. यह गलतियों की प्रार्थना है। हम सब को भी इसे रोज बांचना चाहिए।

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