गुरुवार, सितंबर 23, 2010

समय के साथ गुमा गयीं बहुत-सी चीजें...

(आज अपनी एक पुरानी कविता को बांटने का मन है, जो मेरे कुछ दोस्तों को भी बेहद पसंद है...)

समय के साथ
गुमा गयीं बहुत-सी चीजें...

समय के साथ
गुमा गया वह जंगल
जिससे आसमान दिखायी नहीं देता था
गुमा गया
बुरे दिनों का उजाला
जिसकी जगह ले ली
उजले दिनों के अँधेरों ने

गुमा गया बेरी का वह बाग
वह कुआँ
जिसमें सारी पोथियाँ फेंक दी थीं
अनुभव के शास्त्र तले दबी
उस बच्चे की सिसकियाँ
गूँजती हैं
दिमाग के खोखलेपन में

समय के साथ
गुमा गयीं छोटी-छोटी चिन्ताएँ
उनकी जगह ले ली बड़ी-बड़ी चिन्ताओं ने
जो लगातार खाती हैं
और लुभाती हैं

समय के साथ
गुमा गयीं
माँ-बाप की हिदायतें
बुजुर्गों की नसीहतें
और
अपने एकान्त में बड़बड़ाती घर की देहरी

समय के साथ
गुमा गया
मेरा चेहरा, जिसे मैं पहचानता था
उसकी जगह है ऐसा चेहरा
जिसे दुनिया पहचानती है

समय के साथ गुमा गया वह सुख
जो उदासी से जन्मा था
अब चारों ओर से घिरा हूँ
सुख से उपजी उदासी से

समय के साथ
गुमा गयीं बहुत-सी चीजें
यात्रा में पीछे छूटे
सहयात्रियों की विदाई की मुसकान की तरह।

11 टिप्‍पणियां:

  1. समय के साथ छूट गया वो घर जिसमें ह‍म और तुम रहते थे। अच्‍छी अभिव्‍यक्ति बधाई।

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  2. इस कविता को पसंद करने वाले दोस्तों में मुझे भी शामिल कीजिये…बस एक जिज्ञासा है कि 'गुमा' की जगह 'गुम' होना चाहिये था क्या…?

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  3. यह तो बढ़िया कविता है भाई । हाँ गुम गई बहुत सी चीज़ें कर लें ।

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  4. वाकई कितनी सारी चीजें गुम हो गईं समय के साथ.

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  5. परमेन्‍द्र भाई कविता अच्‍छी है। अगर आपका तात्‍पर्य -खो देने- से है तो गुमा दिया,गुमा दी आदि होना चाहिए। और अगर -खो जाने- से है तो फिर गुम होना चाहिए।

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  6. मित्रो ! ‘गुमा गयी’ व्याकरणिक दृष्टि से अशुद्ध प्रयोग है, लेकिन ‘गुमा गयी’ में निहित एक लय के लिए यह गुस्ताखी करने की छूट ले ली गयी। ‘फलाँ बच्चे ने मेरी गेंद गुमा दी’ जैसे प्रयोग बचपन से करते आने का अभ्यास भी इसके पीछे हो सकता है। आप लोगों ने कविता को गम्भीरता से लिया, आभारी हूँ।

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  7. समय के पार झांकने को मजबूर करती पंक्तियां...
    बेहतरीन....

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  8. नमस्कार !
    अच्छी अभिव्यक्ति है , बचपन से लेकर मात्र जवानी तक ही इंसान बहुत कुछ खो देता है ,
    सुंदर !
    साधुवाद !

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  9. samay ke sath guma gaye wo aahsaas. lekin chhor gaye dard bhari ik aas......
    bachpan main kya kya khoya kuchh yaad nahi, jawani main kya khoya aaj tak yaad hai..budhaape main aaker socha kyun khoya..aur kiske liye khoya tha maine wo sab?
    aaaj majboor kar diya ye sochne par ki kitnaa kuchh guma diy samay ke sath sath maine.
    bahut umda abhivyakti.

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  10. उदासी से जन्मा सुख और सुख से जन्मी उदासी.
    बहुत खूब!

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