सोमवार, जून 06, 2011

ईश्वर का समय का पहिया : शेल सिल्वरस्टीन


ईश्वर का समय का पहिया

ईश्वर ने मुस्कुरा कर मुझसे पूछा एक दिन :
क्या तुम थोड़ी देर के लिए ईश्वर बनना चाहोगे
जिस से मन माफिक चला सको दुनिया?
ठीक है, कोशिश करके देखता हूँ...मैंने जवाब दिया.
पर मुझे मिलेंगे कितने पैसे?
कितनी देर का लंच टाइम होगा?
नौकरी छोड़ने की कोई शर्त तो नहीं?
बेहतर है भाई कि तुम समय का पहिया मुझे कर दो वापिस
मुझे नहीं लगता कि तुम इसके काबिल हो अभी...
ईश्वर ने शांत भाव से जवाब दिया.

माँ और ईश्वर
ईश्वर ने हमें दीं उँगलियाँ -- माँ कहती हैं: फ़ॉर्क से खाना खाओ
ईश्वर ने दी हमें आवाज -- माँ कहती हैं: चीखो मत
माँ कहती हैं ब्रोकोली, अन्न और गाजर खाने को
पर ईश्वर ने तो हमें आईसक्रीम के स्वाद चखने को दिए.
ईश्वर ने दी हमें उँगलियाँ-- माँ कहती हैं: रुमाल का इस्तेमाल करो
ईश्वर ने हमें दिया कीचड़ कादो --माँ कहती हैं: इनमें छपछप मत करो
माँ कहती हैं:शोर मत मचाओ ,अभी पापा सो रहे हैं
पर ईश्वर ने हमें फोड़ने पिचकाने को ढेर सारे डिब्बे दिए हैं.
ईश्वर ने दी हमें उँगलियाँ-- माँ कहती हैं: अपने दस्ताने पहन कर रखो
ईश्वर ने हमें दी हमें बारिश की बूँदें: माँ कहती है: बरसात में भीगो मत
माँ चेताती है संभल के रहना,बहुत पास मत जाना
उन अजूबे प्यारे पिल्लों के जो ईश्वर ने हमें दिए.
ईश्वर ने दी हमें उँगलियाँ--माँ कहती हैं: जाओ इनको धो कर आओ
पर ईश्वर ने दिए हमें कोयले के ढेर और सुन्दर लेकिन गंदे शरीर
मैं बहुत सयाना तो नहीं हूँ पर एक बात निश्चित है:
या तो माँ सही होगी..या फिर ईश्वर.

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