मंगलवार, सितंबर 14, 2010

हमारी हिंदी : रघुवीर सहाय

सभी पाठकों को हिंदी दिवस की शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत है रघुवीर सहाय की कविता :


हमारी हिंदी एक दुहाजू की नई बीबी है

बहुत बोलने वाली बहुत खानेवाली बहुत सोनेवाली


गहने गढाते जाओ

सर पर चढाते जाओ


वह मुटाती जाये

पसीने से गन्धाती जाये घर का माल मैके पहुंचाती जाये


पड़ोसिनों से जले

कचरा फेंकने को लेकर लड़े


घर से तो खैर निकलने का सवाल ही नहीं उठता

औरतों को जो चाहिए घर ही में है


एक महाभारत है एक रामायण है तुलसीदास की भी राधेश्याम की भी

एक नागिन की स्टोरी बमय गाने

और एक खारी बावली में छपा कोकशास्त्र

एक खूसट महरिन है परपंच के लिए

एक अधेड़ खसम है जिसके प्राण अकच्छ किये जा सकें

एक गुचकुलिया-सा आंगन कई कमरे कुठरिया एक के अंदर एक

बिस्तरों पर चीकट तकिये कुरसियों पर गौंजे हुए उतारे कपड़े

फ़र्श पर ढंनगते गिलास

खूंटियों पर कुचैली चादरें जो कुएं पर ले जाकर फींची जाएंगी


घर में सबकुछ है जो औरतों को चाहिए

सीलन भी और अंदर की कोठरी में पांच सेर सोना भी

और संतान भी जिसका जिगर बढ गया है

जिसे वह मासिक पत्रिकाओं पर हगाया करती है

और ज़मीन भी जिस पर हिंदी भवन बनेगा


कहनेवाले चाहे कुछ कहें

हमारी हिंदी सुहागिन है सती है खुश है

उसकी साध यही है कि खसम से पहले मरे

और तो सब ठीक है पर पहले खसम उससे बचे

तब तो वह अपनी साध पूरी करे ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hee powerful abhivyakti. naye preetko aur bimbo me aapne apni peeda ko vyakt kiya hai...
    hindi diwas ke mauke par usse behtar rachna aur koi ho hee nahee sakti..
    jhakjhorti hai...apne andar jhankne ko mazboor karti hai...
    rachna wohee jo pathak ko jhakjhor de, sochne ko mazboor karde...
    sadhuwad itnee sashakt rachna ke liye..aapka aabhar aadarniy Raghuwar ji....
    sath hee aabhari hu aadarniy Parmendra Singh ji ka bhee ki unka chunaav...dhanywad ka paatrah hai...aabhari !

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  2. परमेन्‍द्र जी रघुवीर सहाय जी की कविता सचमुच हमारी हिन्‍दी की दशा का बयान करती है। अगर मैं गलत नहीं हूं तो यह कम से कम चालीस साल पुरानी कविता है।
    अगर रघुवीर जी आज होते तो शायद इसे इस तरह नहीं लिखते। आज के समकालीन सोच में स्त्रियों के बारे में इस तरह से बात करना शायद हम सबको नहीं सुहायेगा।
    बहरहाल कविता के बारे में पहले भी बहुत कुछ कहा जा चुका होगा। कविता रघुवीर सहाय जी की है जिन्‍होंने हिन्‍दी की नई कविता को एक नया मुहावरा दिया है।

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