जॉय हार्जो
जॉय हार्जो का जन्म ओक्लाहोमा के तुल्सा नामक स्थान पर सन् 1951 में हुआ। अनेक साहित्यक संस्थाओं व संगठनों से जुड़ीं जॉय हार्वो के ‘दि लोस्ट सांग’, ‘व्हाट मून ड्रोव मी टू दिस’, ‘रिमैम्बर’, ‘वूमैन हैंगिंग फ्रॉम दि थर्टीन्थ फ्लोर विंडो’, ‘इन मैड लव एंड वार’, ‘फिशिंग’, ‘दि वूमैन हू फैल फ्राॅम दि स्काइ’, ‘ए मैप टू द नैक्स्ट वल्र्ड’ और ‘शी हैड सम हार्सेस’ आदि प्रकाशित हो चुके हैं। अमरीकी मूल निवासियों के लोकगीतों में पंक्ति-विशेष की आवृत्ति से उत्पन्न अद्भुत प्रभाव का उनकी कविताओं में सुन्दर प्रयोग मिलता है। यहाँ प्रस्तुत है उनकी ‘शी हैड सम होर्सेस’ का अनुवाद।
उसके पास घोड़े थे कुछ
उसके पास घोड़े थे कुछ
उसके पास घोड़े थे जो ढांचे थे बालू के
उसके पास घोड़े थे जो नक्शे थे खींचे गये खून से
उसके पास घोड़े थे जो खोल थे सागर-जल के
उसके पास घोड़े थे जो नील पवन थे आकाश के
उसके पास घोड़े थे जो समूर और दांत थे
उसके पास घोड़े थे जो मिट्टी थे और सकते थे टूट
उसके पास घोड़े थे जो थे खंड-खंड बिखरी लाल चट्टान
उसके पास घोड़े थे कुछ।
उसके पास घोड़े थे जिनकी थीं लम्बी नुकीली छातियाँ
उसके पास घोड़े थे जिनकी थीं समूची भूरी जांघें
उसके पास घोड़े थे जो हँसते थे बहुत ज्यादा
उसके पास घोड़े थे जो फेंकते थे पत्थर शीशे के मकानों पर
उसके पास घोड़े थे जो चाटते थे रेजर की पत्तियाँ
उसके पास घोड़े थे कुछ।
उसके पास घोड़े थे जो नाचते थे अपनी माँ की बाहों में
उसके पास घोड़े थे जो सोचते थे कि सूरज थे वे और
चमकती थी उनकी काया दीप्त थे जो तारों की तरह
उसके पास घोड़े थे रात को नाचते थे जो चन्द्रमा पर
उसके पास घोड़े थे बहुत ही शर्मीले जो रहते थे खामोश
अपने ही बनाये थानों पर।
उसके पास घोड़े थे पसन्द थे जिन्हें क्रीक स्टाॅम्प के नाच-गीत
उसके पास घोड़े थे रोते थे जो अपनी बियर में
उसके पास घोड़े थे जो थूकते थे नर महारानियों पर जिन्होंने
डरा रखा था उन्हें अपने आपसे
उसके पास घोड़े थे जो कहते थे
वे नहीं थे भयभीत
उसके पास घोड़े थे जो बोलते थे झूठ
उसके पास घोड़े थे जिन्होंने कह दिया था सच,
नंगा कर जिनकी खींच ली गयी थीं जुबानें
उसके पास घोड़े थे कुछ।
उसके पास घोड़े थे जो कहते थे खुद को ‘घोड़ा’
उसके पास घोड़े थे जो कहते थे खुद को ‘बेताल’
जो छिपाकर रखते थे अपनी आवाजें खुद अपनी तईं
उसके पास घोड़े थे जिनके नहीं थे कोई नाम
उसके पास घोड़े थे जिनके पास थीं किताबें नामों की
उसके पास घोड़े थे कुछ।
उसके पास घोड़े थे फुसफुसाते थे जो अँधेरे में,
जो डरते थे बोलने से
उसके पास घोड़े थे जो खामोशी के डर से उठते थे चीख
जो रखकर चलते थे चाकू बचाए रखने के लिए खुद को प्रेतों से
उसके पास घोड़े थे प्रतीक्षा थी जिन्हें विनाश की
उसके पास घोड़े थे प्रतीक्षा थी जिन्हें पुनरुत्थान की
उसके पास घोड़े थे कुछ।
उसके पास घोड़े थे जो खड़े हो जाते थे घुटनों के बल सामने
किसी भी उद्धारक के
उसके पास घोड़े थे जिन्होंने की थीं कोशिशें उसे बचाने की
जो चढ़ गए थे उसके बिस्तर पर रात को जिन्होंने
की थीं प्रार्थनाएँ जब वे कर रहे थे उसके साथ बलात्कार
उसके पास घोड़े थे कुछ।
उसके पास घोड़े थे कुछ जिन्हें करती थी वह प्यार
उसके पास घोड़े थे कुछ जिन्हें करती थी वह नफरत
ये सब घोड़े थे एक सरीखे।
(ये रेड इंडियन कविताएँ 'रक्त में यात्रा' शीर्षक से पहल-पुस्तिका के रूप में प्रकाशित हैं। अनुवाद श्री वीरेंदर कुमारबरनवाल जी का है। पहल एवं बरनवाल जी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए इन्हें पोस्ट कर रहा हूँ)
मानो एक * विराट* में विचर रहा हूँ... अद्भुत कविताएं हैं पूरी सीरीज़ मे एक पराजित संस्कृति की वेदना है. और मेरे लिए प्रेरक . जारी रखिए.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद. इतनी सुंदर रचनाएं पढ़वाने के लिए.
जवाब देंहटाएंरेड इंडियन सीरीज की कवितायें पढ़ गया और इस ब्लाग की अन्य सामग्री भी > प्रभवित हूँ आपकी रुचि, चयन दृष्टि और प्रस्तुति के अंदाजसे।
जवाब देंहटाएंअब तो बना रहेगा आवन - जावन!
आपका सारा ही ब्लॉग सुचिंतित और सुंदर है.
जवाब देंहटाएंकविताओं का बहुत अच्छा चुनाव। ब्लाग अच्छा लगा। आने वाली रचनाओं का इंतजार रहेगा।
जवाब देंहटाएंप्रिय भाई आपका ब्लॉग देखा. बहुत अच्छा और सारवान लगा. मेरी शुभकामनाएँ और ऐसे सार्थक समर्पित कार्य के लिए बधाई. इस पोस्ट में छपी रेड इन्डियन कविताएँ पहल पुस्तिका में पढ़ी थीं....आपने इन्हें यहाँ लगा कर फिर उस अनुभव को ताज़ा कर दिया. आशा है इस तरह की रचनाएं काव्य-प्रसंग पर लगातार दिखाई देती रहेंगी.
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