tag:blogger.com,1999:blog-6094944045194523070.post5278883382134120650..comments2023-07-11T15:15:51.504+05:30Comments on काव्य-प्रसंग: परमेन्द्र सिंह की कविता : जूता और पाँवपरमेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/07894578838946949457noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-6094944045194523070.post-40466249575950794982010-07-07T17:27:40.899+05:302010-07-07T17:27:40.899+05:30बहुत सुंदर प्रस्तुति - बधाईबहुत सुंदर प्रस्तुति - बधाईAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6094944045194523070.post-4695406923720175882010-07-07T16:31:52.398+05:302010-07-07T16:31:52.398+05:30यार भाई परमेंद्र यही तो है अपना परमेंद्र. यह कविता...यार भाई परमेंद्र यही तो है अपना परमेंद्र. यह कविता तो पहले भी कई बार पढ़चुका हूं और इसका तेवर, इसकी राजनीति और इसका अंदाज मुझे बहुत भाता है.धीरेशhttp://ek-ziddi-dhun.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6094944045194523070.post-5571160752149857372010-07-06T23:41:58.582+05:302010-07-06T23:41:58.582+05:30सपने में
अक्सर ड़र जाते हैं अकेले पांव
क्यूंकि
जूत...सपने में<br />अक्सर ड़र जाते हैं अकेले पांव<br />क्यूंकि<br /> जूता उस वक्त साथ नहीं होता....<br /><br />बेहतर कविताएं...सुंदर ब्लॉग और प्रस्तुतियां...रवि कुमार, रावतभाटाhttp://ravikumarswarnkar.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6094944045194523070.post-55058542337074760632010-07-06T16:50:39.419+05:302010-07-06T16:50:39.419+05:30बहुत पुरानी किसी व्यंगकार की एक कविता याद आ गई --
...बहुत पुरानी किसी व्यंगकार की एक कविता याद आ गई --<br />"जो बार बार पैर छूता है <br />उससे बचो <br />क्योंकि वो आदमी नहीं जूता है !!"<br />आपके ब्लॉग पर आकर अछा लगा !लिखते रहें !अमितhttps://www.blogger.com/profile/14228522614377198712noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6094944045194523070.post-34750651961392271802010-07-03T22:55:24.318+05:302010-07-03T22:55:24.318+05:30परमेन्द्र जी, आपकी यह कविता सीरिज मुझे अच्छी और सं...परमेन्द्र जी, आपकी यह कविता सीरिज मुझे अच्छी और संभावना का पता देने वाली लगी। बधाईAshok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6094944045194523070.post-55360736379053498472010-07-03T20:28:50.424+05:302010-07-03T20:28:50.424+05:30परमेन्द्र सिंह की कविता ‘जूता और पाँव’ समाज के वर्...परमेन्द्र सिंह की कविता ‘जूता और पाँव’ समाज के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में समर्पण, आस्था, प्रेम, आदर्श और विश्वास से युक्त व्यक्तित्व निर्माण करती है। सही नाप का जूता पैरों को ही नहीं बचाता बल्कि हमारे पूरे वजूद को बचाए रखने में सक्षम होता है। दरअसल इस बीहड़ और मनुष्य विरोधी समय की जटिलताओं के वितान में उलझा आम जीवन कसमसा रहा है। परमेन्द्र के यहाँ जूता प्रतीक है संघर्षरत यानि सबअल्टर्न समाज का। जब सत्ता के समीकरण बदलने लगते हैं तो वक्त-बेवक्त यही समाज ‘हाथी के पैर का जूता’ बनकर सत्ता निर्धारण में अहम भूमिका निभाता है। सत्ताधारी के विध्वंस में भी यह समाज कोई कसर नहीं छोड़ता- ‘‘एक सक्षम जूता/ रोकता है / पैर के अनुचित फैलाव को।’’ मानवीयकरण और प्रतीकात्मकता का बड़ा ही खूबसूरत प्रयोग की इस कविता में हुआ है। संवेदना के स्तर पर सामाजिक यथार्थ से बड़ी गहराई तक जुड़ी होने के कारण यह दलित चेतना की कविता समाज के विभिन्न स्तरों पर समकालीन संवेदनाओं के प्रति गहरा लगाव रखती है। परमेन्द्र सिंह को अच्छी कविता ब्लाॅग पर देने के लिए बधाई।रमेश प्रजापतिhttps://www.blogger.com/profile/09630302181071114341noreply@blogger.com