tag:blogger.com,1999:blog-6094944045194523070.post5148379182707920244..comments2023-07-11T15:15:51.504+05:30Comments on काव्य-प्रसंग: खण्डहरपरमेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/07894578838946949457noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-6094944045194523070.post-421107588173402212010-10-18T21:51:08.956+05:302010-10-18T21:51:08.956+05:30कविता खण्डहर के माध्यम से बहुत कुछ कह जाती है।कविता खण्डहर के माध्यम से बहुत कुछ कह जाती है।अमित रायhttps://www.blogger.com/profile/12115436035321473845noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6094944045194523070.post-74883102014922899542010-10-18T09:00:35.614+05:302010-10-18T09:00:35.614+05:30संकीर्णताओं की वर्जनाओं को तोड़ते हुए आपने छाया के ...संकीर्णताओं की वर्जनाओं को तोड़ते हुए आपने छाया के माध्यम से जीवन की वास्तविकताओं से अवगत कराया है। आदमी के अंदर मनुष्य को बचाए रखने की सार्थकता ,सदिच्छा निहित है। खण्हहरों की छाया उस वैभवशाली मानसिकता की ओर इंगति करती है गाँव का जलना और सृृजन करते हाथों का कटना उसके लिए कोई मायने नहीं रखता है। अच्छी कविता के लिए, बधाई।रमेश प्रजापतिhttps://www.blogger.com/profile/11521558586744667288noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6094944045194523070.post-43051837616965767662010-10-17T19:28:32.150+05:302010-10-17T19:28:32.150+05:30बहुत अच्छी प्रस्तुति।
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्...<b>बहुत अच्छी प्रस्तुति। <br />सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।<br />भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोsस्तु ते॥<br />विजयादशमी के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!</b><br /><a href="http://manojiofs.blogspot.com/2010/10/blog-post_17.html" rel="nofollow">काव्यशास्त्र<br /></a>मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6094944045194523070.post-10947142387381070332010-10-17T17:27:49.483+05:302010-10-17T17:27:49.483+05:30छायाओं में विवरण की गुंजाईश नहीं रहती
तभी तो कल्पन...छायाओं में विवरण की गुंजाईश नहीं रहती<br />तभी तो कल्पना की संभावना बनी रहती है ...<br />और कल्पनाएँ कभी कभी इतिहास बन जाती हैं<br /><br />किसी ऐतिहासिक सत्य की ओर <br />इशारा करता हुआ यह अनुपम आलेख <br />किसी धरोहर से कम नहीं है<br />खंडहर से काम चला लेना...<br />इंसान की प्रवृति में शामिल है ही<br />और यह प्रक्रिया <br />इतिहास के पन्नों में मिल जाया करती हैdaanishhttps://www.blogger.com/profile/15771816049026571278noreply@blogger.com